सनातन एवं हिंदुत्व के अनुसार वेद व वेदाङ्ग
भारतीय संस्कृति का मूल आधार वेद माने जाते हैं। "वेद" शब्द का अर्थ है— ज्ञान। सनातन परंपरा के अनुसार वेद किसी मानव-रचित ग्रंथ नहीं, बल्कि ईश्वर प्रदत्त अपौरुषेय ज्ञान हैं। इन्हें श्रुति कहा जाता है क्योंकि ये ऋषियों को तपस्या व ध्यान में दिव्य श्रुति के रूप में प्राप्त हुए। हिंदुत्व की दृष्टि से वेद न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं बल्कि मानव जीवन को समग्र दिशा देने वाले शाश्वत नियम भी हैं।
चार वेद माने जाते हैं—
ऋग्वेद – स्तुति एवं मंत्रों का संकलन
यजुर्वेद – यज्ञीय कर्मकांड से संबंधित
सामवेद – गायन व संगीत आधारित मंत्र
अथर्ववेद – चिकित्सा, मंत्र-तंत्र, लोकजीवन व दार्शनिक विषय
इन चारों वेदों में संहिताएँ, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद सम्मिलित हैं। वे केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि दर्शन, चिकित्सा, खगोल, गणित, संगीत, राजनीति व समाज-व्यवस्था तक का ज्ञान देते हैं।
वेदों के गहन अध्ययन एवं व्यवहारिक प्रयोग के लिए जिन सहायक ग्रंथों की रचना हुई, उन्हें वेदाङ्ग कहा जाता है। वेदाङ्ग छह हैं—
शिक्षा – उच्चारण एवं स्वर-व्यवस्था
व्याकरण – भाषा का शुद्ध ज्ञान
निरुक्त – शब्दों की व्याख्या
कल्प – यज्ञ-विधि व संस्कार
छन्दस् – मंत्रों का छंद-ज्ञान
ज्योतिष – ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन
ये वेदाङ्ग वेदों को समझने की कुंजी माने जाते हैं।
सनातन धर्म मानता है कि वेद और वेदाङ्ग केवल किसी विशेष जाति या वर्ग के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए हैं। हिंदुत्व की विचारधारा भी इन्हें भारतीय संस्कृति का मूल मानकर पुनः प्रतिष्ठित करती है। वेद जहाँ जीवन के आध्यात्मिक आदर्श प्रदान करते हैं, वहीं वेदाङ्ग उन आदर्शों को व्यवहारिक जीवन में उतारने के लिए साधन का कार्य करते हैं।
सनातन परंपरा में वेद और वेदाङ्ग केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला और मानवता के शाश्वत नियम हैं। वेद शाश्वत ज्ञान का भंडार हैं और वेदाङ्ग उस ज्ञान को संरक्षित व सुव्यवस्थित करने के उपकरण। हिंदुत्व की आत्मा में वेद और वेदाङ्ग आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने सहस्रों वर्ष पहले थे।