राष्ट्र मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल का भ्रमण नहीं, बल्कि यह एक ऐसी समग्र यात्रा है जो आत्मा को झंकृत करती है, मन को प्रेरित करती है, समाज को उसकी जड़ों से जोड़ती है, और विज्ञान की गहनता को प्रकट करती है। राष्ट्र मंदिर न केवल पत्थरों की संरचना है, न ही केवल पूजा का स्थान; यह एक जीवंत चेतना है, जो भारत की सभ्यता, संस्कृति, दर्शन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, और वैज्ञानिक जीवन पद्धति को संजोए हुए है। यह वह मंच है, जहां प्रकृति और पुरुष, साकार और निराकार, समय और अनंत, कला और विज्ञान का मिलन होता है। मंदिर समाज में वैज्ञानिक जीवन पद्धति का पथ प्रदर्शक है, जो पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य, शिक्षा, और सामाजिक संतुलन के लिए एक आदर्श मॉडल प्रस्तुत करता है। राष्ट्र मंदिर देखना यानी एक ऐसी यात्रा पर निकलना, जो मानव जीवन के हर आयाम—आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, स्थापत्य, वैज्ञानिक, और सामाजिक—को एक सूत्र में पिरोती है।
राष्ट्र मंदिरों की परिकल्पना सात निष्ठाओं—आत्मनिष्ठ, व्यक्तिनिष्ठ, समष्टिनिष्ठ, धर्मनिष्ठ, कर्मनिष्ठ, ज्ञाननिष्ठ, भक्तिनिष्ठ एवं राष्ट्रनिष्ठ—के समन्वय पर आधारित है। इसका मुख्य उद्देश्य सतत ज्ञान-हस्तांतरण व्यवस्था को विकसित करना है। राष्ट्र मंदिर को 24 घंटे खुला रखने और इस दौरान सनातन धर्म (संस्कृति) के गूढ़ सिद्धांतों का प्रसार करने का विचार है। यह पहल केवल धार्मिक जागरूकता ही नहीं बढ़ाएगी, बल्कि लोगों को आध्यात्मिक, नैतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय मूल्यों से भी गहराई से जोड़ेगी, जिससे भारत के संदर्भ में राष्ट्र की व्यावहारिक एवं जीवंत संकल्पना विकसित होगी।
इसके लिए एक सुव्यवस्थित और रोचक कार्यक्रम तैयार किया गया है—7 दिनों का, 24×7 = 168 घंटे का विस्तृत आयोजन—जिसमें वैदिक ज्ञान, साधना, संवाद, कला-संगीत और लोकसेवा के विविध सत्र सम्मिलित होंगे, ताकि हर निष्ठा का सार जन-जन तक पहुँच सके। जय भारत